कर्ज मुक्ति के सवाल पर पटना में महिला मुक्ति सम्मेलन का आयोजन

कर्ज मुक्ति के सवाल पर पटना में महिला मुक्ति सम्मेलन का आयोजन

कर्ज मुक्ति सम्मेलन
31 जुलाई 2025
IMA हॉल, Patna

प्रेस रिलीज

कर्ज के सवाल को बिहार चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाएं: दीपंकर भट्टाचार्य

कर्ज देने वाली कम्पनियों पर कोई नियन्त्रण नहीं: ज्यां ड्रेज

कर्ज मुक्ति के सवाल पर पटना में महिला मुक्ति सम्मेलन का आयोजन

पीड़ितों ने कहा – सरकार ने हमारी ज़िंदगी को नष्ट कर डाला

पटना, 31 जुलाई 2025
महान कथाकार प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर आज पटना के IMA हॉल में कर्ज मुक्ति महिला सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन में भारी संख्या में कर्ज के बोझ तले दबी महिलाओं ने भाग लिया और अपनी पीड़ा, गुस्से और संघर्ष को साझा किया।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार की नीति ही बन चुकी है – लोगों को कर्ज में धकेल दो ताकि वे कोई और सवाल ही न उठा सकें।

उन्होंने कहा कि आज बिहार में महिलाएं, किसान, और गरीब तबके कर्ज के जाल में फँसे हैं, लेकिन हम शिव चर्चा कर रहे है।

यह कैसा मज़ाक है कि एक ओर आत्महत्या की खबरें आ रही हैं, लोग रोज़गार और रोटी के लिए तरस रहे हैं और दूसरी ओर SIR हो रहा है।

दीपंकर ने कहा कि आज की यह चर्चा, एक आंदोलन की शुरुआत है। कर्ज का सवाल अब बिहार चुनाव का सबसे बड़ा सवाल बनना चाहिए।

हम सब मिलकर इसे गांव-गांव, गली-गली पहुंचाएँगे। जो आत्महत्या कर गए, उनके प्रति हमारी संवेदना है, लेकिन हमें और लोगों को उस रास्ते से रोकना है। मिलकर ही इसका रास्ता निकलेगा।

उन्होंने 2004 के ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान की याद दिलाते हुए कहा कि तब किसानों की आत्महत्या के सवाल ने सत्ता पलट दी थी। आज भी वैसी ही परिस्थिति बिहार में बन रही है। अगर हम एकजुट हों, तो कर्ज मुक्ति का सवाल चुनाव की दिशा बदल सकता है। हम नारा देंगे – सुदखोर बिहार छोड़! चुनाव चोर गद्दी छोड़!

कर्ज अब मुसीबत नहीं, मौत बन गया है” – ज्यां ड्रेज

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां ड्रेज ने कहा कि आज हालात ये हैं कि लोग ज़रूरत में कर्ज़ लेते हैं, लेकिन वह फंदा बन जाता है।
मूलधन के साथ-साथ ब्याज पर ब्याज और फिर उसके ऊपर ब्याज वसूला जा रहा है। माइक्रोफाइनेंस कंपनियाँ फरजी नामों से चल रही हैं, बिना किसी पारदर्शिता के।
उन्होंने चेतावनी दी कि बिहार और झारखंड – दोनों राज्यों में यह लूट धड़ल्ले से चल रही है, और सरकारें तमाशबीन बनी हुई हैं। RTI से भी इन कंपनियों की जानकारी नहीं मिलती। न कोई निगरानी, न कार्रवाई!

49,500 करोड़ का कर्ज और बेतहाशा मुनाफा – किसके नाम पर? – मीना तिवारी

ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि 2020 में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने बिहार में 6,000 करोड़ रुपये का कर्ज बांटा था, लेकिन 2023 में यह आंकड़ा 49,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। यानी एक साल में कई गुना छलांग!

उन्होंने साफ़ कहा कि यह मुनाफा बढ़ा है, लेकिन साथ ही महिलाओं का उत्पीड़न भी कई गुना बढ़ा है। चक्रवृद्धि ब्याज 35 से 40 फीसदी तक जा रहा है – ये शुद्ध शोषण है।

उन्होंने कहा कि बिहार में शायद ही कोई ज़िला बचा हो जहां माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की ज्यादती से महिलाएं प्रभावित न हों।

महिलाओं के ‘सशक्तिकरण’ के नाम पर शुरू हुई ये कंपनियाँ आज शोषण का हथियार बन चुकी हैं।

नीति बदलिए – महिलाओं को रोज़गार दीजिए, कर्ज नहीं – कल्पना विल्सन

सम्मेलन में कल्पना विल्सन ने कहा कि हमें ऐसी नीति चाहिए जो निजी माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के शिकारी मॉडल पर तत्काल रोक लगाए। महिलाओं को कर्ज़ नहीं, स्थायी रोज़गार और सम्मानजनक मज़दूरी की गारंटी चाहिए।

सरकार ने हमारी ज़िंदगी नष्ट कर दी – पीड़ित महिलाओं की गवाही

सम्मेलन में जीविका, एनआरएलएम और विभिन्न समूहों की बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं।

उन्होंने बताया कि कैसे भ्रष्टाचार, एजेंटों की दबंगई और अपमानजनक वसूली की वजह से वे खुद को कर्ज़ के दलदल में डूबता महसूस कर रही हैं।

कई महिलाओं ने फूट-फूट कर बताया कि हमारी कमाई ब्याज में चली जाती है। बच्चों की पढ़ाई, इलाज, घर — सब चौपट हो चुका है। आत्महत्या की सोच आती है।

प्रो. विद्यार्थी विकास, वंदना प्रभा और अन्य वक्ताओं ने रखा अपना पक्ष

सम्मेलन की शुरुआत में वंदना प्रभा ने प्रेमचंद के उपन्यासों के ज़रिए बताया कि कैसे कर्ज़ का सवाल लंबे समय से भारतीय समाज में खासकर महिलाओं को कुचलता रहा है।

इस मौके पर कर्ज़ पर आधारित एक डॉक्युमेंट्री भी दिखाई गई।

अन्य लोगों में प्रो. विद्यार्थी विकास, एमएलसी शशि यादव, महबूब आलम, सरोज चौबे, अनिता सिन्हा, सोहिला गुप्ता, मीरा दत्त, दिव्या गौतम, रीता वर्नवाल, भारती एस. कुमार, मंजु प्रकाश, संगीता सिंह आदि शामिल थीं।


प्रस्ताव पत्र

इस सभा में प्रस्तावित किया जाता है कि:

  1. आज बिहार एक ओर जहां देश का सबसे गरीब राज्य है, वहीं दूसरी ओर सबसे बड़ा माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो भी रखता है। विभिन्न राज्यों में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की मनमानी ब्याज दरों और वसूली के दौरान उत्पीड़न के खिलाफ व्यापक आंदोलन हुए, जिसके चलते सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा और कानून बनाने पड़े। बिहार में भी माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के संचालन पर नियंत्रण और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक स्पष्ट और सख्त कानून शीघ्र बनाया जाए।
  2. जिला स्तर पर कर्ज के कारण आत्महत्या करने वालों की पहचान की जाए। प्रत्येक पीड़ित परिवार को ₹20 लाख प्रति व्यक्ति की तात्कालिक मुआवजा राशि दी जाए। कर्ज़ चुकाने के दमनात्मक दबाव के चलते गांव छोड़कर भागे हज़ारों परिवारों को सरकार संरक्षण दे और उनकी कर्ज़ माफी के लिये तत्काल विशेष कदम उठाए!
  3. सभी पात्र महिलाओं को सरकारी बैंक से मात्र 2% वार्षिक ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाए, जिससे वे शोषणकारी माइक्रोफाइनेंस और महाजनी व्यवस्था से मुक्त हो सके।
  4. जीविका समूह से जुड़ी सभी महिलाओं को सम्मानजनक रोजगार उपलब्ध कराया जाए। साथ ही, उनके उत्पादों की राज्य सरकार द्वारा सुनिश्चित खरीद की व्यवस्था हो।
  5. जीविका कार्यक्रम का ग्राम पंचायत स्तर पर स्वतंत्र सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) कराया जाए, और उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाए ताकि पारदर्शिता बनी रहे।

1 अगस्त से भाकपा माले के ‘बूथ चलो अभियान के अंतर्गत सभी कर्ज पीड़ित महिलाएं बूथ स्तर पर अपने नाम वोटर लिस्ट में जांच करेंगी और साथ ही बूथ स्तर पर ‘जन सुनवाई’ का आयोजन किया जाए।

अब कर्ज़ के खिलाफ बिहार बोलेगा, और बदलाव लाएगा।

AIPWA

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *